Sandeep Kumar

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लेखनी कहानी -18-Feb-2025

गीत हो 
ग़ज़ल हो तुम 
खिली खिली 
कमल हो तुम

मन की आंगन का 
सजल हो तुम 
वक्त बेवक्त 
हलचल हो तुम 

सच है 
चंचल हो तुम 
धैर्य धारण 
सरल हो तुम 

धुप छाया 
बादल हों तुम 
चहचहाती बुलबुल
मिठी पल हो तुम 

गहरी पानी 
निर्मल हो तुम
मानस की
पटल हो तुम 

स्वप्न लिखें 
कल हो तुम 
बहती धारा 
जल हो तुम 

वासंती पवन
तरल हो तुम 
लेखन की
गजल हो तुम 

कहां ढुंढे
आत्म गरल हो तुम 
बहुत अच्छी 
मीठी कल हो तुम 

मचल रही 
चांद दल हो तुम 
प्यारे 
दिल के अंदर हो तुम

गीत हो,,,,
संदीप कुमार 
अररिया बिहार 
© Sandeep Kumar

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1 Comments

hema mohril

26-Mar-2025 04:56 AM

amazing

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